सरकार ने पॉक्सो एक्ट (लैंगिक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम), 2012 (Pocso Act) में संशोधन कर कठोर सजा का प्रावधान जोडा है। केन्द्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने बताय कि बच्चो को यौन अपराधो से बचाया जाना चाहिए और इसके लिए मंत्रीमंडल ने पॉक्सो एक्ट में संशोधन को मंजूरी दे दी है। नये प्रावधान के तहत गंभीर यौन अपराधों के मामलों में अपराधी को मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। यह माना जा रहा है कि यह एक संपूर्ण पहल है, जिसके तहत इस अधिनियम को न केवल मजबूत किया जाता है, बल्कि इसे इतना बडा किया जाता है कि कृत्रिम दवाओं और हार्मोन का दुरूपयोग किसी बच्चे के बचपन को मारने के लिये न किया जा सके। पॉक्सो एक्ट की धारा 4, धारा 5, धारा 6, धारा 9, धारा 14, धारा 15, और धारा 42 में संशोधन किया जाएगा। इन सभी धाराओं में बाल शोषण के पहलुओं को समझाया गया है। धारा 4, धारा 5 एवं धारा 6 में बदलाव कर मौत की सजा सहित कठोर प्रावधान किया जाएगा, तथा धारा 9 में संशोधन कर बच्चों को प्रकृतिक आपदा के दौरान होने वाले यौन अपराधों से बचाने का प्रावधान किया जाएगा। धारा 14 एवं 15 में संशोधन कर बाल पोर्नोग्राफी के खतरे को दूर किया जाएगा। इसे नष्ट करने या हटाने या बच्चे को शामिल करने वाली अश्लील सामग्री की सूचना न देने पर जुर्माना लगाने का प्रस्ताव है। रिर्पोटिंग और अदालत में सबूत के साथ पेश न करने को छोडकर अश्लील सामग्री को प्रचारित करने के लिये व्यक्ति को जेल या जुर्माना या दोनो की सजा दी जा सकती है, व्यवसायिक प्रयोजन के लिये बच्चे को शामिल करने वाले किसी भी रूप में अश्लील सामग्री को संग्रहित करने के लिए दंडात्मक प्रावधानों को और कठोर बनाया गया है। इसी साल अप्रैल में सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया था, जिसमें 12 साल से कम उम्र की लडकी के साथ दुष्कर्म के दोषी को मौत की सजा और 16 साल से कम उम्र की लडकी के साथ दुष्कर्म-हत्या के दोषी को न्यूनतम सजा 10 साल से बढाकर 20 साल या उम्रकैद का प्रावधान किया गया है।
क्या
है पॉक्सो एक्ट ?
संविधान
के अनुच्छेद 15 का खंड (3), अन्य बातों के साथ राज्यों के बालको के लिए विशेष उपबंध
करने के लिए सशक्त करता है, जिसके तहत इस अधिनियम का निर्माण किया गया था। 19 जून,
2012 को यह अधिनियम लागू किया गया था, जिसका पूरा नाम ''लैंगिक अपराधो से बालको का
संरक्षण अधिनियम, 2012'' है, जो जम्मू-कश्मीर को छोडकर पूरे देश में लागू है। इस
अधिनियम में कुल 46 धाराएं है। वर्ष 2012 में बच्चो को यौन अपराधों से संरक्षण के
लिए यह अधिनियम बनाया गया था। इस कानून के जरिए नाबालिग बच्चो के साथ होने वाले यौन
अपराध और छेडछाड के मामलों में कार्यवाही की जाती है। यह अधिनियम बच्चो को यौन उत्पीडन
और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है। इस कानून के तहत अलग-अलग
अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है। देशभर में लागू होने वाले इस अधिनियम के तहत
सभी अपराधों की सुनवाई एक विशेष न्यायालय द्वारा कैमरे के सामने बच्चे के माता-पिता
की मौजूदगी में होती है।
बाल
अधिकारो के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन क्राई (चाइल्ड राइट्स एंड यू) के मुताबिक
भारत में हर 15 मिनट में एक बच्चा यौन अपराध का शिकार बनता है और पिछले 10 सालों में
नाबालिगों के खिलाफ अपराध में 500 प्रतिशत से ज्याद की वृद्धि हुई है। एक रिपोर्ट
में यह भी खुलासा किया गया है कि बच्चो के खिलाफ होने वाले अपराध के मामलों में से
50 प्रतिशत से भी ज्यादा महज पांच राज्यों में दर्ज किए गए है। इन राज्यों में उत्तर
प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली और पश्चिम बंगाल शामिल है।
इस
अधिनियम में संशोधन के साथ-साथ भारतीय दंड सहिंता में भी संशोधन कर धारा 376 में एक
नई उपधारा 3 जोडी गई है, जिसमें कहा गया है कि 16 साल से कम उम्र की लडकी के साथ दुष्कर्म
करने पर न्यूनतम 20 साल की सजा दी जा सकेगी। अपराधी को मृत्यु दंड का प्रावधान भी
किया गया है यदि वह 12 साल से कम उम्र की लडकी के साथ सामूहिक दुष्कर्म में शामिल
हो।
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