बस्तियॉं
परिचय- भोजन के बाद आश्रय मनुष्य की सबसे प्रमुख आवश्यकता
है। लोग घरों का निर्माण करते हैं तथा अपने आप को मौसम के आकस्मिक बदलाव से बचाने
के लिए तथा सामाजिक जीवन व्यतीत करने के लिए बस्तियों का विकास करते हैं। वास्तव
में गया वह महत्वपूर्ण कदम है, जिसके द्वारा भौतिक तथा सांस्कृतिक वातावरण में
उसका अनुकूलन होता है। ''बस्ती मनुष्य द्वारा अपने वातावरण में अनुकूलन के लिए
उठाया गया पहला कदम है। एक बस्ती में अनिवार्यत: घर तथा सडकें होती हैं।
बस्तियों
का वर्गीकरण- आर्थिक क्रियाकलापों के
आधार पर बस्तियों को दो सामान्य वर्गों में बॉंटा जाता है-
1. ग्रामीण बस्तियॉं
एवं
2. नगरीय बस्तियॉं
1.
ग्रामीण बस्तियॉं- वे बस्तियॉं होती है,
जहॉं लोग अधिकतर कृषि तथा संबंधित क्रियाकलापों जैसे पशुधन का रखरखाव, डेरी उघोग,
मुर्गी पालन, वानिकी,ग्रामीण बस्तियों में लोग मत्स्यपालन तथा खनन आदि कार्य करते
हैं। नगरीय बस्तियों के लोग निवासी
गैर-कृषीय कार्य जैसे उघोग,सेवा क्षेत्र आदि में कार्य करते हैं। वास्तव में
ग्रामीण तथा नगरीय शब्द सामाजिक जीवन को प्रदर्शित करता है। वास्तव में नगरों
में रहने वाले गॉंवों में जन्में अधिकतर लोगों की एक बडी संख्या है। इसके विपरीत
गांवों में रहने वाले लोगों में नगरों में जन्में लोगों की संख्या नाम मात्र की
होती है।
ग्रामीण
बस्तियों के प्रकार- संरचना, आकार,ग्रामीण
बस्तियॉं जनसंख्या का विकास तथा कार्य के आधार पर ग्रामीण बस्तियों को मोटे तौर
पर दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
1. सघन अथवा केन्द्रीयकृत
बस्तियॉं 2. परिक्षिप्त अथवा प्रकीर्ण बस्तियाँ । सघन बस्तियों में सडकों, वीथिकाओं
तथा गलियों का एक विकसित जालक्रम होता है। यह जालक्रम न केवल बस्तियों में बल्कि
खेतों तथा आसपास के क्षेंत्रों में भी देखा जा सकता है। परिक्षिप्त अथवा प्रकीर्ण
बस्ती में मात्र एक ही परिवार का आवास केन्द्र बिन्दु होता है। एक व्यापक तथा
क्रमबद्ध अध्ययन के आधार पर भारतीय ग्रामीण बस्तियों को निम्नलिखित रूप से
विभाजित किया जा सकता है:
1. सघन बस्तियँ
2. अर्ध-सघन बस्तियँ
3. प्रकीर्ण बस्तियँ
4. परिक्षिप्त बस्तियँ
ग्रामीण
बस्तियों की सामाजिक-स्थानिक संरचना-
बस्तियों के आकृति विज्ञान के अनुसार स्वर्ण जातियों जैसे- ब्राहण, राजपूत तथा
कायस्थ गॉंव के ऊँचे उत्तम स्थानों को अधिगृहीत करते हैं, उनके घर तुलनात्मक
रूप से बडे होते हैं तथा प्रत्येक विवाहित महिला के लिए एक अलग कमरा होता हैं।
इसके विपरीत निम्न जाति के लोग खासकर अछूतों या शुद्र के घर/झोंपडी में मात्र एक
कमरा होता है, जिसमें परिवार के सभी सदस्य रहते हैं, कभी-कभी इसमें मवेशी भी रखे
जाते हैं। इस प्रकार के घरों में खुला स्थान या आँगन नहीं होता है। इस प्रकार की
बस्तियॉं गंगा-यमुना दोआब, रोहिलखंड प्राखंड तथा हरियाणा एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश
में देखी जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त निम्न जातियॉं सामान्यत: बस्ती की बाहरी
सीमा में रहती हैं। वास्तव में चमार, मोची, पासी, जाटव, मेहतर, खटीक तथा धानुक
अपने घरों का निर्माण ऊँची जाति के घरो से थोडी दूरी पर बनाते हैं।
ग्रामीण
बस्तियों की मुख्य विशेषतायें-
भारतीय ग्राम 7000 वर्ष से अधिक पुराने हैं, भारतीय ग्राम भारतीय सभ्यता के प्रतीक
हैं, ग्रामीण बस्तियों के मकान गारे, मिट्टी, कच्ची एवं पक्की ईंट, पत्थर, बॉंस
तथा घास आदि के बने होते है, ग्रामीण बस्तियॉं प्राय: बाग बगीचे से घिरी होतीं
हैं, प्रत्येक गांव में मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरूद्धारा, कुऑं, चौपाल,
तालाब, कब्रिस्तान तथा शमशान घाट होता है, अधिकतर गांव नियोजित नहीं होते सडकें
तथा गलियॉं टेढी-मेढी होती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में ऊँचे उत्तम स्थान पर स्वर्ण
जाति के लोग रहते हैं। गांव के लोग समय पडने पर एक-दूसरे की सहायता करते है तथा
रूढीवादी प्रकृति के होते हैं।
2. नगरीय
बस्तियाँ- नगरीय बस्ती बडी सघन व
केन्द्रीकृत होती है। जिसमें अधिकतर श्रम बल, उघोग तथा सेवा क्षेत्र में काम करने
वाले लोग रहते हैं। नगरीय स्थान को पारिभाषित करने वाला कोई समान मापदंड नहीं है
यह देश से देश, राज्य से राज्य, व क्षेत्रों के अनुसार होता है। सामान्यत: यह
परिभाषा जनसंख्या के आकार, घनत्व, निवासियों के व्यवसाय तथा स्थानीय सरकार के
प्रकार पर आधारित होती है।
नगरीय
बस्तियों के प्रकार-
1. नगरीय गॉंव- यहॉं की
अधिकतर जनसंख्या गैर-कृषीय कार्यो को करती है। यहॉ दोनों ग्रामीण तथा नगरीय कार्य
एक मिश्रित रूप में देखे जा सकते हैं।
2. शहर - यह किसी नगरीय
स्थान के लिए सामान्य नाम है, खासकर जहॉं की जनसंख्या एक लाख से कम हो। शहर का
आकार एक देश से दूसरे देश में भिन्न होता है। भारत के शहरों में सामान्यत: एक
नगर निगम होता है। यह नगरीय बस्ती की सबसे छोटी इकाई है।
3.नगर- यह एक पूर्ण रूप
से विकसित नगरीय समूहन होता है, जिसमें उघोगो तथा सेवा क्षेत्र की प्रधानता होती
है तथा एक जटिल आंतरिक संरचना होती है। भारत में कोई शहर नगर तब कहलाता है जब उसकी
आबादी एक लाख से अधिक हो जाती है।
4. विश्व नगर/महानगर-
ऐसे नगर जिनकी आबादी दस लाख से अधिक हो भारत में महानगर कहलाते है।
5. सन्नगर- ऐसे क्षेत्र
जहॉं दो या दो से अधिक महानगर इस प्रकार जुडे हो कि एक सामान्य व्यक्ति को यह
पता न चले कि एक नगर कहॉं समाप्त होता है और दूसरा कहॉं प्रारंभ होता है। भारत
में सन्नगर दिल्ली, कोलकाता तथा मुंबई के आसपास देखे जा सकते है।
नगरीकरण
की समस्याएँ- भारत की नगरीय जनसंख्या
विश्व में चीन के बाद दूसरी सबसे बडी जनसंख्या है। भारत की नगरीय जनसंख्या
संयुक्त राज्य अमेरिका की कुल जनसंख्या के बराबर है। लाखों की संख्या में
महानगरों तथा बडे नगरों में लोगों का आगमन हो रहा है, जिसके कारण भारत की नगरीय जनसंख्या
पॉंच प्रतिशत प्रतिवर्ष से अधिक की गति से
बढ रही है। जनसंख्या की यह अत्याधिक वृद्धि दर अनेक सामाजिक-आर्थिक तथा पर्यावरण
समस्याओं का कारण है। कुछ मुख्य समस्यऍं है- स्थान की समस्या तथा आवास की
कमी, सामाजिक सुख सुविधाओं की कमी, बेरोजगारी, परिवहन की समस्या, ऊर्जा संकट,
जलापूर्ती की कमी, प्रदूषण, सामाजिक तनाव, अपराध में बढोत्तरी आदि।
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